Poem jeevan yahi hai

जीवन यही है | Poem jeevan yahi hai

जीवन यही है

( Jeevan yahi hai )

 

ना धरा में ना नभ में ना गहरे समंदर में।
खोज खोज के खुद को खोया झाँका नहीं खुद के अंदर में।

राहों से तु भटक ना राही किंचित सही नहीं है।
अंतर्मन हि असीम सत्य है, यक़ीनन जीवन यही है।

अल्फाज़ों में जो समझाऊं तो बात थोड़ी पुरानी है ।
यूँ कहदो मैं भटका, सम्भला खुद की मेरी कहानी है।

एक मिला था साथी मुझको अनजानी इन राहो में
खुश था मैं जीवन जीता था, साथी के संग गाहों में।

दौर एक फिर आया ग़म का शय रही ना पनाहो में।
कई जन्मों के वादे करके छोड़ गया मुझे इन राहो में।

क्या जीवन वही था? या जीवन यही है?
क्या मैं इस जीवन को खोदूँ ऐसा करना सही है?

रब को कोसना बंद करता हूँ , ये किंचित सही नहीं है।
अंतर्मन ही असीम सत्य है, यक़ीनन जीवन यही है ।

इन गर्दिशों को अब अल्फाज़ों की तुहीन से भरदूँ।
ईश्वर ने दी है इजाज़त ये जीवन सत्य के नाम करदू।

अनजानी राहों में फिर से मुझसा ही मिला है कोई जिसे ईश्वर ने ही मिलाया है।
जो पहले कभी ना पाया था, अब उससे कहीं ज़्यादा पाया है ।

यदि अतीत सत्य था मेरा तो उस सत्य को ठुकराऊं मैं
ईश्वर ने किया जो सही किया, अब वर्तमान अपनाऊ मैं

जीवन रूपी चक्र की धूरी फिर से घूम रही है।
अंतर्मन ही असीम सत्य है, यक़ीनन जीवन यही है।

☘️☘️☘️

अमित कालावत "अमू" जयपुर, राजस्थान

अमित कालावत “अमू”
जयपुर, राजस्थान

यह भी पढ़ें :-

जिन्दगी | Zindagi

Similar Posts

2 Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *