मन्नत | Poem Mannat
मन्नत
( Mannat )
खूबसूरत है वो कुदरत मखमली लिबास हो जिसका,
क्या मन्नत मांगू उस कुदरत से नाम ओंठो पर जिसका।
मैं बात करूं तो कुदरत भी हैरानी की नज़र देखती है,
छेड़-छाड़ हो रहा है कुदरत से क्या मायना रखती है।
ग़ैर मुहज़्ज़ब है वो लोग जो कुदरत को अनदेखा करें,
फ़ाजिर है वो लोग जग में जो देखकर भी अनदेखा करें।
हर रोज़ मजलिस में कुदरत को बचाने की सपथ लेते हैं,
फिर हिज़्र में अपना नाम दर्ज कर पछतावा कर लेते हैं।
मन्नत पूरी होगी तभी जब सुख का सांस लेंगे हम सब,
मुकद्दर तब खुलेगा जब मुक़द्दस में रह सांस लेंगे हम सब।
मन्नत पूरी तब मानो नाज़नी सी कुदरत का ख्याल रखेंगे,
कुदरत के साथ अगर क़ुर्रम साक न कर ख्याल रखेंगे।
हुक्मनामा दे सियासत कुदरत को बचाने का संवारने का,
मन्नत पूरी होगी तभी जब सारे मिलकर कुदरत को संवारने का।
खान मनजीत कह सब को पेड़ पौधे पानी पहाड़ बचाया कर,
ज़िन्दगी आपकी हसीन होगी साथ मिलकर कुदरत बचाया कर।
मनजीत सिंह
सहायक प्राध्यापक उर्दू
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ( कुरुक्षेत्र )