हे गगन के चंद्रमा | Poem on hey gagan ke chandrama
हे गगन के चंद्रमा
( Hey gagan ke chandrama )
तुम हो गगन के चन्द्रमा, मै हूँ जँमी की धूल।
मुझको तुमसे प्रीत है, जो बन गयी है शूल।
तेरे बिन ना कटती राते, दिल से मैं मजबूर,
हे गगन के चन्द्रमा, तू आ जा बनके फूल।
रात अरू दिन के मिलन सा,क्षणिक है ये प्रीत।
तुम वहाँ और मै यहाँ हूँ, कैसी है यह रीत।
हे गगन के चन्द्रमा, सुन ले हृदय की हूंक,
मेरे मन में तुम ही हो, तुम ही हो मेरे मीत।
बावरी बन के मैं भटकूँ, चाँद की सी चकोर।
आंसूओं से नयन भर गए, भींगे आँख के कोर।
मन ये मेरा तडपे ऐसे, जैसे जल बिन मीन,
हे गगन के चन्द्रमा, तू आ जा ना इस ओर।
कुछ तो ऐसा जतन कर कि, मिटे हिय की पीड।
मै अकेली तडपती हूँ, चाहे हो कितनी भी भीड़।
क्या तेरे मन मे भी साजन, विरह के है गीत,
हे गगन के चन्द्रमा, हूंकार पढ ले पीड़।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )
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