Kavita ki hunkar

कविता की हूंकार | Poem on kavita ki hunkar

कविता की हूंकार

( Kavita ki hunkar )

 

कलमकार कलम के पुजारी लोग कवि कहते हैं
सुधारस बहाते कविता का छाये दिलों में रहते हैं

 

लेखनी ले कवि हाथों में ओज भरती हुंकार लिखे
मां भारती का वंदन भारतमाता की जयकार लिखें

 

वंदे मातरम वंदे मातरम गीत लिखते हम वीरों के
शीश चढ़ाए मातृभूमि को अमर सपूत रणधीरों के

 

आजादी के दीवानों की जोशीली यशगाथा गाते हैं
निकले वीर कफन बांधे माटी का तिलक लगाते हैं

 

देश भक्ति जोश जज्बा वे राष्ट्र धारा में बहते हैं
सरहद पर अटल सेनानी खड़े सीमा पर रहते हैं

 

देशप्रेम भरी लेखनी शौर्य पराक्रम लिखती हैं
ज्ञान की गंगा सुहानी भारती की झांकी दिखती है

 

स्वाभिमान वीरों की धरती रणधीरों का वंदन है
कलम कहे धरती का कण कण पावन चंदन है

 

तिलक करें माटी का मातृभूमि जयकार लिखें
बैरी दल को धूल चटा दे ऐसी हम हूंकार लिखे

 

राम कृष्ण राणा की भूमि तलवारों का जोश यहां
केसरिया बाना दमकता भारतमाता जयघोष यहां

 

   ?

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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