पलके अपनी खोल प्रभु | Poem palke apni khol prabhu
पलके अपनी खोल प्रभु
( Palke apni khol prabhu )
तुमने भेजा है धरती पे क्या होता मेरे साथ प्रभु
पलके अपनी खोल जरा देखो हे मेरे नाथ प्रभु
कोई आंख दिखाता कोई मुझको धमकाता है
मेहनत खून पसीने की कोई कमाई खा जाता है
मेरी हर तकलीफों का बढ़ गया पारावार प्रभु
डूब रही नैया मेरी आय कर दो भव पार प्रभु
तुम चाहो तो सुख की गंगा जीवन में बहारें आती
पतझड़ सुखाये बाग कोई कली कली खिल जाती
हे भाग्यविधाता मेरे बदलो किस्मत की रेखाएं
यश वैभव भंडार भरें चले सुरभित सी हवाएं
आंधी तूफां को पार करे हौसला बुलंद कर दो मेरा
मिल जाए मंजिलें मुझे ऐसा सौभाग्य कर दो मेरा
तेरा ध्यान लगाकर ही नित राहों में गुण गाता हूं
कर दो बेड़ा पार मेरा पीर प्रभु तुझको सुनाता हूं
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )