सइयाँ मुझको बनारस घुमाना | Poem Saiyan
सइयाँ मुझको बनारस घुमाना !
( Saiyan mujhko banaras ghumana )
सुनों -सुनों सइयाँ मोहें गरवा लगाना,
बात मेरी मानों बनारस घुमाना।
लस्सी मैं पिऊँगी,गोलगप्पे भी खाऊँगी,
सुबह -सुबह चलके मैं गंगा नहाऊँगी।
शामवाली आरती कराना,
मुझे गोलगप्पे खिलाना।
सुनों -सुनों सइयाँ मोहें गरवा लगाना,
बात मेरी मानों बनारस घुमाना।
लस्सी जो पिऊँगी तो नींद खूब आएगी,
नींदों में राजा मैं खुलके सताऊँगी।
रबड़ी-मलाई डलाना,
मुझे गोलगप्पे खिलाना।
सुनों -सुनों सइयाँ मोहें गरवा लगाना,
बात मेरी मानों बनारस घुमाना।
जन्नत के जैसी ऊ आबो-हवा है,
गंगा के कारण ऊ नगरी जवाँ है।
काशी का दर्शन कराना,
मुझे गोलगप्पे खिलाना।
सुनों -सुनों सइयाँ मोहें गरवा लगाना,
बात मेरी मानों बनारस घुमाना।
अस्सी उन घाटों की छटा निराली,
ले लेना सइयाँ तू सोने की बाली।
कश्ती में घूँघट उठाना,
मुझे गोलगप्पे खिलाना।
सुनों -सुनों सइयाँ मोहें गरवा लगाना,
बात मेरी मानों बनारस घुमाना।
कचौड़ी गली का वो व्यंजन चखाना,
बनारस का पान वो मीठा खिलाना।
भोले शंकर का दर्शन कराना,
मुझे गोलगप्पे खिलाना।
सुनों -सुनों सइयाँ मोहें गरवा लगाना,
बात मेरी मानों बनारस घुमाना।
बनारसी साड़ी का न कोई सानी,
पहनूँगी राजा ई छलकी जवानी।
पहिले जइसे कोराँ उठाना,
मुझे गोलगप्पे खिलाना।
सुनों -सुनों सइयाँ मोहें गरवा लगाना,
बात मेरी मानों बनारस घुमाना।
सुनती हूँ दुनिया से लोग वहाँ आते,
पावन शहर में वो पावन हो जाते।
वो मुक्ति का द्वार दिखाना,
मुझे गोलगप्पे खिलाना।
सुनों -सुनों सइयाँ मोहें गरवा लगाना,
बात मेरी मानों बनारस घुमाना
रामकेश एम.यादव (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक), मुंबई