प्रगति का रस्ता | Pragati ka Rasta
प्रगति का रस्ता
( Pragati ka rasta )
मैं कभी नहीं मुड़ूंगा पीछे
हमेशा चलता रहूंगा
अपने पथ पर
बिना किसी परवाह किए
मैं अपने सभी गम को भुलाते हुए
भूख प्यास को भुलाते हुए
तन पर फटे कपड़े सजाते हुए
आगे बढूंगा
और मैं इस दुनिया में
अपना नाम रोशन करूगा
जब मैं पढ़ लिखकर
एक इच्छा इंसान जाऊंगा
मैं युद्ध में सैनिक
खेतों में किसान
विद्यालय में अध्यापक
घर में पिता जी
गांव की संस्कृति
दिहाड़ीदार मजदूर
नाटक मंचन में रंगकर्मी
सिनेमा में अभिनेता
समाज में लेखक,कवि
गांव में सरपंच
ये हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं
इनकी मार्गदर्शन में चलेंगे
जीवन सफल बन जाएगा
तभी भारत देश महान कहलाएगा।
मनजीत सिंह
सहायक प्राध्यापक उर्दू
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ( कुरुक्षेत्र )