प्यार अब कहाँ ये नयी शाम है | Ghazal
प्यार अब कहाँ ये नयी शाम है
( Pyar ab kahan ye nayee shaam hai )
प्यार अब कहाँ ये नयी शाम है
नफ़रतों की पुरानी अभी शाम है
खो न जायें अंधेरो की गलियों में हम
जल्दी चल यार घर हो रही शाम है
याद फिर आ गया बिछड़ा साथी कोई
आँखों में दे गयी फिर नमी शाम है
अश्क थमते नहीं ,क्या करूँ मैं जतन
हाय कैसी ये यादों भरी शाम है
ख़्वाब ‘आज़म’ मेरे दिल दुखाते रहे
मुश्किलों से मेरी ये ढली शाम है !
शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )
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