ज़िंदगी में अब न वो मंज़र सुहाने आयेंगे
ज़िंदगी में अब न वो मंज़र सुहाने आयेंगे

जिंदगी में अब न वो मंजर सुहाने आयेंगे

( Zindagi mein ab na wo manzar suhane aayenge )

 

 

भूल  जा   फिर  लौट के, गुजरे  ज़माने आयेंगे ।

ज़िंदगी  में  अब  न  वो  मंज़र  सुहाने  आयेंगे ।।

 

असफलता  पर   मेरी   जो आज  शर्मिन्दा  हुए।

देखना  कल वो ही मुझ पर हक जताने आयेंगे।।

 

जो   फसाने  आज   चर्चा  को  तरसते  हैं बहुत।

हर  बशर  के होंटों  पर कल वो फसाने आयेंगे।।

 

रूठ कर जल्दी से खुद ही  मान जाना सीख लो।

और   कोई  लोग  क्यूं  तुझको  मनाने  आयेगे ।।

 

तू  समझता है जिन्हें दुनिया में अपना ऐ ‘कुमार’।

देख  लेना  वो  ही  तेरे दिल को दुखाने आयेंगे ! !

 

लेखक:  मुनीश कुमार “कुमार “

हिंदी लैक्चरर
रा.वरि.मा. विद्यालय, ढाठरथ

जींद (हरियाणा)

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