प्रेम में डूबी स्त्री | Kavita
प्रेम में डूबी स्त्री
( Prem me dubi stree )
प्रेम में डूबी किसी स्त्री को
कभी कोई फर्क़ नहीं पड़ता
कि तुम कितने पढ़े लिखे हो
या फिर अनपढ़,
तुम दिन के दो सौ रूपए कमाते हो
या दो हज़ार,
तुम सबसे सुंदर दिखते हो
या बदसूरत !…
बस, उसे तो फ़र्क
सिर्फ़ इस बात से पड़ता है-
जो तुम हो,
जो तुम्हारा है,
हर वह चीज़ :
जो तुमसे जुड़ी है;
तुमने वह सब कुछ
निस्वार्थ भाव से
उसे समर्पित किया है या नहीं ?…
यदि तुम्हारा उत्तर ‘हाँ’ है
तो वह ‘प्रेम में डूबी स्त्री’
सही-ग़लत की परवाह किए बग़ैर
अपने माँ-बाप,
परिजनों
और स्वयं का भी
संम्पूर्ण त्याग कर
तुम्हारी हो जाएगी
सदा-सदा के लिए ।
कवि : संदीप कटारिया
(करनाल ,हरियाणा)