प्यार करने की ज़माने से इजाज़त ली है
प्यार करने की ज़माने से इजाज़त ली है
प्यार करने की ज़माने से इजाज़त ली है
हमने ख़ुद मोल बिना बात ही आफ़त ली है
है मुनासिब कहाँ हर रोज़ बहाना आँसू
हमने कुछ दिन के लिए ग़म से रिआयत ली है
मुफ़लिसों का नहीं कोई भी सगा दुनिया में
सारी दुनिया ने ग़रीबों से अदावत ली है
दे रहा था मिरा रब सबको मुरादें दिल की
लाल-ओ-गौहर की जगह हमने ज़ियारत ली है
धोका ही धोका मिला और मिली बेईमानी
क्यों बिना बात ही उल्फ़त में ये उजरत ली है
है घड़ी अब कहाँ रुख़सत की तो आई देखो
फाँसी पे चढ़ने की सरकार से मोहलत ली है
शाइरी रास नहीं आती है हमको मीना
क्यों ग़ज़ल कहने की हमने तो ये ज़हमत ली है

कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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