क़ुबूलनामा

( Qubool nama )

प्यार छुपाना क्यों बताती क्यों नहीं,
अपने जज़्बात तुम जताती क्यों नहीं,
मिलना न मिलना बात है मुकद्दर की
अपना हूँ एहसास कराती क्यों नहीं।

इश्क़ में आँसू नहीं हम चाहते है खुशी,
बात ये अपनों को समझाती क्यों नहीं।

दुश्मन है जो भी हमारी मोहब्बत के,
बग़ावत में आवाज़ उठाती क्यों नहीं।

मैं तो चाहता हूँ तुम्हें पागलों की तरह,
तुम भी अपना प्रेम दर्शाती क्यों नहीं।

बेचैन हो उठा हूँ मैं तुम्हें पाने के लिए,
तुम अरमां महसूस कराती क्यों नहीं।

रूठ जाने पर जब हो जाता हूँ नाराज़,
मुझे तुम प्यार से तब मनाती क्यों नहीं।

चाह मेरी दो बदन एक जान होने की,
मिलन की आस तुम जगाती क्यों नहीं।

 

कवि : सुमित मानधना ‘गौरव’

सूरत ( गुजरात )

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