राधा कान्हा के द्वार | Radha Kanha ke Dwaar

राधा कान्हा के द्वार

( Radha kanha ke dwaar ) 

 

फिर से  खड़ी  हुई  है  राधा  आ कान्हा के द्वार ।
माँग  रही है  उससे  अपने , सारे  ही  अधिकार ।।

वापस करे कन्हैय्या गोकुल से चोरी की खुशियाँ
और चुकाए  वृन्दावन का, पिछला  सभी उधार ।।

महका रचा बसा खुशबू सा फिर भी रहा अरूप
हर अल्हड़ गोपी को ठगकर, छीना था जो प्यार ।।

अविश्वास  जिसने हर मन को, बाँटा था विश्वास
और साथ  ले गया सभी के, जीवन  के  आधार ।।

दधि,माखनकेसंग जिनजिन के,लूटलियेथे ह्रदय
और  लूट कर  भी  मनवाता, रहा सदा  आभार ।।

दिये हरनयन को बस आँसू, हरमन को दावानल
बाँटे, सदा उपेक्षा के  सब को  अगणित उपहार ।।

नाग कालिया जैसा सब की, यादों की  यमुना में
बड़वानल सा बनरहता जो ज्वालाओं का ज्वार ।।

किये  सभी के  साथ  हमेशा, ही  उसने अपराध
कोई कभी नहीं कर पाया, पर उसका प्रतिकार ।।

सब कुछ देख रहा है फिर भी मौन रहा“आकाश”
जान रहा क्या  न्याय करेगा,आखिर यह संसार ।।

 

Manohar Chube

कवि : मनोहर चौबे “आकाश”

19 / A पावन भूमि ,
शक्ति नगर , जबलपुर .
482 001

( मध्य प्रदेश )

यह भी पढ़ें :-

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *