प्रेम की होली

राधा रानी की प्रेम की होली

राधा रानी की प्रेम की होली

राधा की चुनर है पीली
कृष्ण संग खेले राधे होली
प्रेम का रंग सदा बरसाती है
राधा रानी सबको ही भाती है।

गोपियों को करके किनारे
राधा रानी है पिचकारी ताने,
कृष्ण पर गुलाल बरसाती है
राधा रानी प्रेम की होली खेलाती है,

पिचकारी में भर के रंग,
कृष्ण भिगोते गोपियों के अंग
राधा देख – देख मुस्कुराती है
कृष्ण को हजार बातें सुनाती हैं,

ना भीगें रे तुम सब की चोली,
राधा संग रुक्मणी भी खेले होली,
क्यों विरह वेदनाएं बढ़ाते हो
राधा संग रुक्मणी का भी ज्वाला धधकाते हो,

गोपियों को ना आने दूं पास,
राधा रानी का कभी ना तोड़ू आस,
पनघट पे चल पकड़ मुरली का साथ,
थामकर प्रेम रुपी राधा रानी का हाथ।

Jyoti Raghav Singh

कवयित्री : ज्योति राघव सिंह
वाराणसी (काशी) उत्तर प्रदेश, भारत

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