रजनी गुप्ता ‘पूनम चंद्रिका’ की रचनाएँ

वस्ल के वक़्त

( Vasl ke Waqt )

वस्ल के वक़्त वो रुका ही नहीं
माह-ए-उल्फ़त में दिल मिला ही नहीं

मुस्कुराते हैं ख़ार में भी गुल
हार से उनका वास्ता ही नहीं

ज़ीस्त क़ुर्बान इस पे है मेरी
हिन्द जैसा वतन बना ही नहीं

क्यों किनारों से राब्ता रखता
ये समुंदर को ख़ुद पता ही नहीं

तेरी आग़ोश में रही रजनी
पर मिला इसका कुछ सिला ही नहीं

गौरी जिनका नाम


सुता हिमालय की उमा, गौरी जिनका नाम।
अष्टम् दुर्गा रूप में, करें सफल सब काम।।

आईं माँ नवरात्रि में, करके केहरिनाद।
रूप महागौरी शुभम्, हरें सकल अवसाद।।

सर्व सुमंगलदायिनी, श्वेताम्बरा प्रसिद्ध।
सती सदागति, शाम्भवी, करतीं सुखी-समृद्ध।।


आईं माँ नवरात्रि में, होकर सिंह सवार।
चूड़ी बिंदी से करूँ, माता का श्रृंगार।।

अष्टभुजा नवरूप में, करतीं हैं उद्धार।
शक्तिमयी संकट हरो, करो दुष्ट संहार।।

जगजननी जगदंबिका, सुखी रहे संतान।
रजनी पूनम चंद्रिका, माँग रही वरदान।।

चुनरी माँ की लाल है, लाल सजे श्रृंगार।
हलवा- पूड़ी भोग ले, भक्त खड़े दरबार।।

रम्य कमलदल से करूँ, माता का श्रृंगार।
सदा सुहागन मैं रहूँ, करना माँ उपकार।।

ऊँचे पर्वत पर बना, माँ तेरा दरबार।
हस्तबद्ध आते सभी, लेकर भक्त पुकार।।
१०
रण- चंडी का रूप धर, बन दुर्गा अवतार।
दुष्ट दलन कर मातु ने, भरी विजय हुंकार।।
११
सदा पुकारूँ मैं तुझे, हे दुर्गा हे अंब।
भीषण विपदा में रहीं, एक तुम्हीं अवलंब।।
१२
वरद- हस्त वरदायिनी, महिमा अपरम्पार।
जगराता फिर आ गया, भरने को भण्डार।।
१३
आतीं माँ नवरात्रि में, करके केहरिनाद।
रूप सुहाना भा गया, हुआ हृदय आह्लाद।।
१४
माँ दुर्गा ममतामयी,अद्भुत है श्रृंगार।
शीश मुकुट गल माल है, अष्टभुजी जयकार।।

रजनी गुप्ता ‘पूनम चंद्रिका’

लखनऊ, उत्तर प्रदेश

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