” रोटि “
( Roti )
बड़ी अजीब दुनिया बा
रोटी उजर तावा करिया बा
केहु पकावे केहु खाये
कुर्सी पे बइठ हाथ हिलाये
जे पकाय जरल खाये
सुन्दर रोटी कुर्सी के भाये
खुन जरे पसिना आये
तावा पे जाके सुन्दरता लाये
जे खुन जराये पसिना लाये
ओके खाली दुख भेटाये ।
कवि – उदय शंकर “प्रसाद”
पूर्व सहायक प्रोफेसर (फ्रेंच विभाग), तमिलनाडु
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