सबसे जुदा अपनी अदा | Sabse juda apni ada | Kavita
सबसे जुदा अपनी अदा
( Sabse juda apni ada )
सबसे जुदा अपनी अदा लगे मनभावन सी।
इठलाती बलखाती और बरसते सावन सी।
हंसता मुस्कुराता चेहरा अंदाज निराला है।
खुशियों में झूमता सदा बंदा मतवाला है।
मदमस्त चलता चाल मनभावन से नजारे हैं।
सारी दुनिया से हटकर नखरे उसके न्यारे हैं।
दिलदार है दिल के पूरे हंसमुख मिजाज है।
हंस-हंस सबसे मिले हंसों में सरताज है।
प्रेम के मोती लिए मैं घूमता एक बंजारा सा।
शब्द के मोती पिरोता गीत कोई प्यारा सा।
बोल मीठे मीठे गाता मन के सारे द्वार खोल।
लब्जों से महके महफिल गाता मीठे मीठे बोल।
अपना बनाता सबको अधरों की मुस्कान भी।
सबसे जुदा अपनी अदा और निराली शान भी।
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )