सामाजिक चिंतन | Samajik Chintan
सामाजिक चिंतन
( Samajik chintan )
सामाजिक चिंतन, यथार्थ से आदर्श की ओर
जननी जन्म भूमि गौ माता,
अंध भौतिक युग शिकार ।
बढते वृद्धाश्रम भू विदोहन अवारा गायें,
संकेत अनैतिक जीवन विकार ।
उपर्युक्त त्रि दैवीय मातृ आभा,
फिर वंदन समग्र प्रयास पुरजोर ।
सामाजिक चिंतन, यथार्थ से आदर्श की ओर ।।
वासनमय सोच विचार,
परस्पर संबंध गरिमा अस्त ।
अर्थ देह आकर्षण अहम,
निज ही निज मनुज पस्त ।
अब कदम आदर स्नेह प्रेम पथ,
दर्शित अपनत्व भरी मंगल भोर ।
सामाजिक चिंतन, यथार्थ से आदर्श की ओर ।।
पाश्चात्यता अति अनुकरण,
परिणाम पाश्विक आचरण ।
लघु दृष्टि अबला गात पर,
तज मर्यादा मय आवरण ।
आत्मसात सुसंस्कार निज संस्कृति,
उर भाव नारी सम्मान सराबोर ।
सामाजिक चिंतन,यथार्थ से आदर्श की ओर ।।
मोबाइल अन्य युक्ति अति प्रयोग,
मानव सिद्धांत प्रतिकूल ।
दूर सारे नैसर्गिक आनंद,
सुख चाहना पर प्राप्त शूल ।
परिवार मित्र समुदाय विमर्श,
मूल मंत्र तनाव रहित जीवन ठोर ।
सामाजिक चिंतन, यथार्थ से आदर्श की ओर ।।
महेन्द्र कुमार
नवलगढ़ (राजस्थान)