Jeevan ki Satyata
Jeevan ki Satyata

जीवन की सत्यता

( Jeevan ki satyata ) 

 

सतत ओस के झरते कण
दिखाई तो नही देते
पर,बना देते हैं महा सागर को जैसे
ऐसे ही
कर्म के प्रवाह मे
दुआओं बद्दुआओं के स्वर
किसी को मार देते हैं बेमौत
तो किसी को अमर बना देते हैं…

अलौकिक भाषा और संकेत
सूक्ष्म एहसास ही हैं
जिन्हे सुनना नही
महसूस करना होता है…

कुछ पल
बाह्य ध्वनि की मुक्तता
और अंतर ध्वनि की श्रवण्ता से संभव है ऐसी उपलब्धता…

सोच और कर्म ऊर्जा ही
करती है निश्चित
आपके कर्मगत परिणाम
और वही निष्कर्ष ही
कहलाता है आपका भाग्य..
सार्वभौमिक सत्य को
झुठलाया नही जा सकता
आप माने या न माने
यही आपके जीवन की सत्यता है..

 

मोहन तिवारी

 ( मुंबई )

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