संभव हो तो | Kavita Sambhav ho to
संभव हो तो
( Sambhav ho to )
संम्भव हो तो कुछ बातों पे, मेरे मन की करना।
सूर्ख रंग के परिधान पर तुम,कमरबन्द पहना।
लट घुघरालें एक छोड़ कर, जूडें को कस लेना,
लाल महावर भरी पैजनी,थम थम करके चलना।
काजल की रेखा कुछ ऐसी, जैसी लगे कटारी।
बिदिया चमकें ऐसे जिससे, नजर न जाए टारी।
चंचल चितवन रम्भा जैसी, चले चाल सुकुमारी,
यौवन भर के छलके जैसे,लगे तिलोत्तमा नारी।
जूही के गजरे से शोभित, केशु कामनी काया।
रंग सुनहरा ऐसे लागे, धूप की पहली छाया।
मधुवन में माद्कता भर दे, अंग रंग भर माया,
वाम अंग हुंकार बसों हे, प्रीती प्रिया मन भाया।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )