
क्रोध है ऐसी अग्नि
( Krodh hai aisi agni )
खुशियों से भरा रहता है उन सब का जीवन,
सकारात्मक सोच रखें एवं काबू रखते-मन।
काम क्रोध मद लोभ मात्सर्यो से जो रहे दूर,
बुद्धिमान कहलाते है दुःखी नही रखते-मन।।
ज्ञानी होकर भी रह जाते वो व्यक्ति-अज्ञानी,
बदले की ये भावना जिन व्यक्तियों ने ठानी।
खो देते वह क्रोध में आकर बुद्धि बुद्धिमानी,
होती यह बिमारी ऐसी किसी को खानदानी।।
पलभर में ही बिगाड़ लेते रिश्ते एवं सम्बन्ध,
मुर्खता का प्रमाण देते है वो क्रोधित होकर।
शब्दों का जोर-जोर से वही करते है बखान,
सत्य नही समझ सकते वो गुस्से में आकर।।
क्रोध पुराने घावों को भी फिर हरा कर देता,
बच्चें जवान बुढ़ो का ख़ून हरक़त में आता।
तर्क-वितर्क होने से रिश्ते में पतन हो जाता,
इस गुर्राहट से संयुक्त परिवार बिगड़ जाता।।
ख़ुद मौन रहेगें तो ये क्रोध भी वश में रहेगा,
थोड़ी-धीरज रखने से वो घड़ी टल जाएगा।
रहो प्रेम-प्यार से यारों ना करना कोई क्रोध,
क्रोध है ऐसी अग्नि ख़ुद ही जलता जाएगा।
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