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संत्रास | Gitika chhand

संत्रास

( Santras )

 

ईर्ष्या, पीड़ा, शत्रुता, अति, अभाव का त्रास !
हीन भावना , विवशता , से निर्मित संत्रास !!

 

मन में पाया बिखरता, जब इनका अंधियार
चाहा कारण खोज ले, क्यों है यह प्रतिभास !!

 

मन ने सुन ली सहज ही , मन की सारी पीर
समझ लिया था जान कर, वह सारा इतिहास !!

 

अगम अवांछित के लिये,सृजित अकारण मोह
सरल शीघ्रतम मार्ग के , लिए विमोहित आस !!

 

सोचा – आखिर क्यों हुए , थे ये सब उद्भूत
क्यों इनसे इतना अधिक, है जीवन उद्भास !!

 

किया कठिन वातावरण , ने वह आविष्कार
निम्न ऊर्ध्व जब हो गये , थे चेतन आयास !!

 

मन ने मन का मित्र बन , दिया उसे संज्ञान
जीवन का हर कर्म वह , बना रखे संन्यास !!

 

कर्त्ता  से  दृष्टा  बने , रहे  शान्त  गम्भीर
तन आत्मा का मात्र है , अस्थाई अधिवास !!

 

मिला उसे आत्मीयता , का मधुरिम सम्मान
अब अनुभव होने लगा , उसे नवल उल्लास !!

 

पा  कर  अनुपम  सांत्वना , की  ऊर्जा भरपूर
मन की सार्थक प्रेरणा , अब है मन के पास !!

 

मन  से  मिल  कर हो रहा, अब मन को विश्वास
मन उठ कर छू पाएगा , निश्चय ही “आकाश” !!

?

Manohar Chube

कवि : मनोहर चौबे “आकाश”

19 / A पावन भूमि ,
शक्ति नगर , जबलपुर .
482 001

( मध्य प्रदेश )

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उनकी समझ में थे बहुत से | Ghazal

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