Sawan ke Jhoole

भूल गए सावन के झूले | Sawan ke Jhoole

भूल गए सावन के झूले

( Bhool gaye sawan ke jhoole ) 

 

भूल गए सावन के झूले, भूल गए हर प्रीत यहां।
भाईचारा प्रेम भूले, हम भूल गए हैं मीत यहां।
भूल गए सावन के झूले

मान सम्मान मर्यादा भूले, सभ्यता संस्कार को।
रिश्ते नाते निभाना भूले, अतिथि सत्कार को।
गांव की वो पगडंडी, चौपालें जाना हम भूले।
बहती थी रसधार जहां, गीत तराना हम भूले।
भूल गए सावन के झूले

पनघट रहा ना पनिहारिन, कुएं बावड़ी भूल गए।
रंग रसिया रंग जमाए, घुल मिल जाना भूल गए।
तीज त्यौहार सद्भाव भरे, मिल मनाना भूल गए।
मुस्कानों से फिजां महके, प्रीत निभाना भूल गए।
भूल गए सावन के झूले

नयनों से अंगारे बरसे, शीश झुकाना भूल गए।
वाणी के तीखे तीर चले, प्यार जताना भूल गए।
उन बुढ़ी आंखों के सपने, धर्म निभाना भूल गए।
चकाचौंध के कायल हो, वो प्रेम तराना भूल गए।
भूल गए सावन के झूले

 

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

यह भी पढ़ें :-

राम जन्मभूमि पावन है | Ram Janmabhoomi

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *