
सजा
( Saza )
मेरी गलतियों की मुझको सजा दे गया,
बेवफा था मुझे वो दगा दे गया।
क्या बताए हमें क्या सजा दे गया,
मेरी खुशियों के सपने जला के गया।
आइने सा ये दिल तोड कर चल दिया,
इतने टुकडे किये कि मैं गिन ना सका।
हूंक हुंकार की आसूंओ में दिखी,
क्यों वो मुझकों सता के रूला के गया।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )