शान
शान

शान

( Shaan )

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शान   इंसान   की   होती   सबसे  बड़ी,

शान वालों की शान पूरी प्रभु ने किया है।

 

शान समझे सिया की जनक जिस घड़ी,

माने मन की महा प्रेरणा प्रण  लिया है।

 

चांप चटकाये जो भी जहां में यदि कोई,

ब्याह कर बेटी ले जाये संग में सिया है।

 

राम  रक्षा  किये  शान  की  जायकर,

चांप चटका दिये प्रण को पूरा किया है।

 

शान खोकर सफर जिंदगी का करे,

ऐसे  मानव  का गाओ तराना नहीं।

 

मर्द  होकर जवां  मौत से जो डरे,

साथ उसका निभाया जमाना नहीं।

 

जाके दुश्मन से जो नौजवां मिल गये,

मां  के  गोंदी  में  पैदा वो मक्कार है।

 

पल  रहा  नौजवां  जो गुलामी तले,

उस जवां के जवानी को धिक्कार है।

 

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लेखक: सूर्य प्रकाश सिंह ‘सूरज’

(वरिष्ठ अध्येता) अरई,कटरा,

संत रविदास नगर  (उत्तर प्रदेश )

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