कुछ रात ठहरी सी | Shero shayari
कुछ रात ठहरी सी
( Kuch raat gehri si )
कुछ रात ठहरी सी है , स्याह सी, गहरी सी है
धुंध को ओढ़े सी है , कई राज समेटे सी है
सर्द सी , जर्द सी , सीने में अलाव लिए हुए
कांपती, कंपाती सी , दिल को हाथ में थामे सी है
सांसों की हरारत से ,जमा लहू पिघलाते हुए
इक आतिश की चाह में ,ज़िन्दगी सोच में खड़ी सी है
ऐ खुदा, तू तो था जुदा ,संगदिल, तंगदिल या , बुजदिल नहीं
तेरी फितरत में क्यूं अब खुदगर्ज़ी, खुदफरामोशी सी है
लेखिका :- Suneet Sood Grover
अमृतसर ( पंजाब )