शीशा-ए-दिल पे जमी है धूल शायद | Ghazal on love
शीशा-ए-दिल पे जमी है धूल शायद
( Shisha-e-Dil Pe Jami Hai Dhool Shayad )
शीशा-ए-दिल पे जमी है धूल शायद।
देखने में हो रही है भूल शायद।।
आरजू होती नहीं सब दिल की पूरी।
हर दुआ होती नहीं मक़बूल शायद।।
एक साया-सा नज़र आया है हम को।
दूर अब तो है नही मस्तूल शायद।।
बात दिल पे आ लगी कुछ ऐसी उनकी।
चुभ गया है दिल में कोई सूल शायद।।
कत्ल करके खुद ही अपनी हसरतों का।
हम थे कातिल बन गए मक़तूल शायद।।