सिंदूर दान
सिंदूर दान
रक्त वर्ण सुवर्ण भाल कपाल का श्रृंगार है यह।
ये मेरा सिंदूर है भरपूर है संस्कार है यह।।
तुम न होते मैं न होती कौन होता,
फिर जगत में कुछ न रहता शून्य होता,
पर हमारे प्रणय पथ के प्रण का मूलाधार है यह।।ये मेरा०
सप्तफेरी प्रतिज्ञा जब प्रकृति में घोषित हुयी,
वो लता भी गगन तक वटवृक्ष पर पोषित हुयी।
घूंट जाये विष अकेलेपन का वो उपचार है यह।।ये मेरा०
पर मेरे सिंदूर क्या तूं वैसा है जैसा कहा था,
तुमको सर पर रखने खातिर मैने कितना दुख सहा था,
आज मुझसे कह रहा कि घर नहीं बाजार है यह।।ये मेरा०
कितनी मांगे चाहिए तब तृप्त हो पायेगा तूं,
सिर से उतरा जो अगर पगधूलि बन जायेगा तूं,
सम्भल जा अर्द्धांगिनी हूं श्रेष्ठ शेष विचार है यह।।ये मेरा०
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कवि व शायर: शेष मणि शर्मा “इलाहाबादी”
प्रा०वि०-बहेरा वि खं-महोली,
जनपद सीतापुर ( उत्तर प्रदेश।)
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