सुहाग | Suhag kavita
सुहाग
( Suhag )
बिंदिया पायल बिछिया कंगन सुहागन श्रृंगार है।
सिन्दूर पिया मन भाये बढ़ता आपस में प्यार है।।
मंगलसूत्र सुहाग प्रतीक चेहरा चांद सा दमके।
चूड़ियों की खनक में सितारा सौभाग्य चमके।।
सदा सलामत रहे सुहाग अनुराग उमड़ता है।
प्रेम भरे पावन रिश्तों में प्यार दिलों में बढ़ता है।।
माथे पे सिंदूर सौंदर्य में चार चांद सजाता है।
पिया की आयु बढ़ती स्वामी को लुभाता है।।
धर्म-कर्म व्रत पूजा हो पावन मन विचार सभी।
सुख शांति समृद्धि और सौभाग्य का संचार तभी।।
मुख्य मंडल आभा दमके ओज भरा ललाट हो
प्रीत का आंगन हरा भरा पिया जोहती बाट हो।।
मनभावन सारा नजारा कुदरत भी देती साथ।
सुहाग पाए दीर्घायु भारतीय नारी के जज्बात।।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )