सूर्य अस्त होने लगा | कुण्डलिया छंद | Kundaliya chhand ka udaharan
सूर्य अस्त होने लगा
( Surya ast hone laga )
सूर्य अस्त होने लगा,
मन मे जगे श्रृंगार।
अब तो सजनी आन मिल,
प्रेम करे उदगार।।
प्रेम करे उदगार,
रात को नींद न आए।
शेर हृदय की प्यास,
छलक कर बाहर आए।।
आ मिल ले इक बार,
रात्रि जब पहुचे अर्ध्य।
यौवन ऐसे खिले,
कि जैसे दमके सूर्य।।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )
यह भी पढ़ें : –
वाह !!!!
बहुत सुन्दर