स्वीकार नहीं | Sweekar Nahin
स्वीकार नहीं
( Sweekar nahin )
सुमन सरीखी याद तुम्हारी, केवल यूँ हीं स्वीकार नहीं।
इस एक धरोहर के सम्मुख ,जँचता कोई उपहार नहीं।।
तेरे गीतों को गाने से ,यह हदय कमल खिल जाते हैं।
तन्हाई की परछाईं में ,हम तुम दोनों मिल जाते हैं ।
बातें होती हैं नयनों से ,जब अधर-अधर सिल जाते हैं ।
यह विरह-मिलन का महाकुंभ ,अब समझेगा संसार नहीं।।
सुमन सरीखी याद——
सिवा तुम्हारे इन आँखों को , अब दिखती है दुनिया काली ।
सुधियों के दीपो से निशि भर ,करता हूँ जगमग दीवाली ।
सारे जग की खुशी विधाता ,इस झोली में तुमने डाली।
भूलूँगा जन्मों जन्मों तक ,मैं तेरा यह उपकार नहीं।।
सुमन सरीखी याद—-
मेरे गीतो को महका दो ,नगरी-नगरी हर आँगन में।
अगणित सुरभित गीत रचे हैं , मैंने अब की इस सावन में ।
तेरे मन की साध छिपी है ,मेरे गीतों की धड़कन में।
तेरे उर की प्यास बुझाऊँ ,क्या यह मेरा अधिकार नहीं।।
सुमन सरीखी याद—-
आँसू जो भी दिये जगत ने ,निश्छल नयनों ने स्वयम् पिये ।
जितने सुमन सँजोये थे वे ,तेरी माला में गूँथ दिये ।
पाहुन से वरदान न पाया ,जाने कितने ही हवन किये ।
इस जीवन को भगवान मिला ,अब तक कोई आधार नहीं ।।
सुमन सरीखी याद—-
चिंगारी अब जलते-बुझते ,विकराल ज्वाल में बदल गई।
मेरी यह छोटी सी इच्छा ,सीमा से आगे निकल गई।
जितना भी मन को समझाया ,उतनी अधरों से फिसल गई ।
जिस पर साग़र हूँ न्यौछावर ,उससे ही मिलता प्यार नहीं।।
सुमन सरीखी याद—–
इस एक धरोहर—-