sad shayari || तेरे हाथों में कब गुलाब है
तेरे हाथों में कब गुलाब है
( Tere Haathon Mein Kab Gulab Hai )
तेरे हाथों में कब गुलाब है
पत्थर मारने को ज़नाब है
मेरा प्यार इंकार कर गया
उसी का ही बस आता ख़्वाब है
ख़ुशी का नहीं शब्द है लिखा
ग़मों की लिखी ये क़िताब है
नहीं प्यार उसको क़बूल ये
न आया ख़त का ही ज़वाब है
जिसका मैं दीवाना हुआ जाऊं
चढ़ा ऐसा गुल पे शबाब है
मैं दीदार करता हंसी का क्या
चेहरे से न उतरा हिसाब है
ख़ुशी का क्या मैं जाम पीता
ग़मों की पी मैंनें शराब है
उसे फ़ोन कैसे भला करता
मेरा फ़ोन आज़म ख़राब है