टी.आर.पी. के चक्कर में
टी.आर.पी. के चक्कर में
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आजकल चैनलों पर न्यूज की जगह डिबेट आ रह रहे हैं,
बहुत लोग अब टी.वी देखने से घबरा रहे हैं।
जनता के सरोकार वाली खबरों की जगह-
नफरत और हिंसा बढ़ाने वाले टॉपिक डिबेट में छा रहे हैं,
टी.वी वाले एंकर एक तरह से जनता को उकसा रहे हैं।
चीख-चीख कर गला फाड़ कर विवादित बहस होती है,
जो बिल्कुल एकाकी और भड़काऊ होती है।
प्रबुद्ध लोग तो टी.वी देखना ही छोड़ रहे हैं,
ये केवल हिंसा और नफरत जो परोस रहे हैं।
लेकिन जो इन बारीकियों को नहीं समझते,
उनके मन मस्तिष्क में नफरत बैठ जाती है,
समुदाय विशेष के प्रति घृणा हो जाती है।
बदल जाते हैं उनके व्यवहार,
खड़ी कर लेते हैं एक छद्म दीवार।
सोचते हम देश के लिए कितना कुछ करते हैं,
और ये सदैव हिंसा में ही लिप्त रहा करते हैं।
देश/विदेश में कहीं भी आतंकी घटना हो,
नाम इन्हीं का तो आता है !
यह सोच सोच एक भय उनके मन घर कर जाता है,
मीडिया/ चैनल वाले इसी भय को भुनाते है,
जानबूझकर ऐसी खबरे/डिबेट ही चलाते हैं।
ताकि उनकी टी.आर.पी और कमाई बढ़े,
इसी चक्कर में देश को जाने अनजाने नुकसान पहुँचा रहे हैं,
देशवासियों को आपस में ही लड़वा रहे हैं।
शत्रु ताकतें इस स्थिति का फायदा उठा सकती हैं,
देश को नुकसान भी पहुँचा सकती हैं।
भगवान के लिए टी.आर.पी का चक्कर छोड़िए,
देश की जनता का मूड मोरीये ।
दिखाईए जनसरोकार वाली खबरें, और सरकारों से सवाल पूछिये !
जनता की समस्याओं का हल ढ़ूँढ़िए !!
जनता को जागरूक और सतर्क बनाएँ,
यूँ जाति-धर्म में न यूँ उलझाएँ ।
आप पर आँखें मूँद कर विश्वास करती है जनता,
ये विश्वास बनाए रखिए..
छोड़िए टी.आर.पी का लालच/लोभ !
सच्ची खबरों से करवाईए जनता को भोग।
आपके लिए यह चुटकियों का खेल है,
जनता में मेल हो जाए तो शत्रुओं का सारा खेल फेल है।
अभी आपकी बहुत जरूरत है देश को,
बचा लीजिए देश को… बचा लीजिए देश को।