उल्फ़त में चोट मिली ऐसी टूटे है

उल्फ़त में चोट मिली ऐसी टूटे है

उल्फ़त में चोट मिली ऐसी टूटे है

 

 

उल्फ़त में चोट मिली ऐसी टूटे है!

यादों में उसकी अब ग़ज़लें सुनते है

 

इक भी आया न मुझे  दोस्त जवाब मुझे

रोज़ उसे लिक्खे उल्फ़त के ख़त मैंनें है

 

इक भी अल्फ़ाज़ न उल्फ़त का था बोला

बोले उसने तो शब्द सभी कड़वे है

 

आंखों से आंखें दोस्त मिलाते थे जो

वो अपनी देखो अब आंखें बदले है

 

पहले प्यार दिखाते दोस्त हंसी चेहरे

फ़िर नफ़रत के दोस्त शरारे मिलते है

 

उल्फ़त का फूल उसे भेजा जब भी

नफ़रत के पत्थर मुझपे ही मारे है

 

होश नहीं चैन नहीं दिल को आज़म के

उल्फ़त में यारों हम ऐसे लूटे है

 

 

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शायर: आज़म नैय्यर

(सहारनपुर )

 

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