उपकार

उपकार

उपकार

 

भारत में हमें जन्म दिया ,

सबसे बङा तेरा उपकार।

इसी पुण्य -भूमि पर ,

सदा लिया तुमने अवतार।।

 

सब जीवों में श्रेष्ठ बनाया,

दिया सबकी रक्षा का भार।

चौरासी का जो बंधन काटे ,

भव से तरने की पतवार।।

 

सूरज-चंदा दोनों मिलकर,

स्वस्थ रखते ये संसार।

समीर-भूमि इन दोनों पर,

है सबकी रक्षा का भार।।

 

प्रकृति को गौर से देखो ,

समझो इसका पर- उपकार।

वृक्ष-नदिया दोनों मिलकर,

फल-जल का देते उपहार।।

 

पर-पीङा ही पाप-कर्म है,

यही है सब धर्मों का सार।

कुदरत भी है बदला लेती,

पङी ‘कोरोना’ की जब मार।।

 

सभी निरोगी सुखी बने,

वेद भी हैं करते प्रचार।

स्व से हटाओ दृष्टि अपनी,

तभी ये निकलेंगे उद्गार।।

 

बंद करो प्रकृति -दोहन,

सबसे अर्ज करे “कुमार”।

जल बचाओ, पेङ लगाओ,

फर्ज निभाओ,करो उपकार।।

 

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लेखक: Ⓜ मुनीश कुमार “कुमार”
(हिंदी लैक्चरर )
GSS School ढाठरथ
जींद (हरियाणा)

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