प्यार के रोज मगर यूं ही असर होने तक | Urdu Ghazal in Hindi
प्यार के रोज मगर यूं ही असर होने तक
( Pyar ke roj magar yoon hi asar hone tak )
प्यार के रोज मगर यूं ही असर होने तक
याद करता रहूंगा जीवन बशर होने तक
मैं नहीं और सहूँगा कि सितम तेरे ही
छोड़ जाऊंगा नगर तुमको ख़बर होने तक
तू क़सम भूल गया यार वफ़ा वादे की
वो वफ़ा दूँगा तुझे चाक जिगर होने तक
कल मुलाकात तुझी से न मगर हो ये फ़िर
साथ रह आज मगर तू रात भर होने तक
जीस्त से दोस्त ढ़लेगे सभी ग़म ये धीरे
सब्र कर दोस्त दुआ की तू असर होने तक
सच कहूँ यार यहाँ तो न किसी का कोई
है सभी साथ तेरे पैसे मगर होने तक
प्यार है इक बार तू बोल ज़रा आज़म से
मैं करुंगा गुलों की बारिश यूं सर होने तक