उसने किया नहीं रिश्ता क़बूल है

उसने किया नहीं रिश्ता क़बूल है

उसने किया नहीं रिश्ता क़बूल है

 

 

उसने किया नहीं रिश्ता क़बूल है!

ये जुल्म भी किया उसका क़बूल है

 

पर कर गया धोखा वादे के नाम पे

उसका किया था जो वादा क़बूल है

 

उसको तो सिर्फ़ आता नफ़रत का लहज़ा

कब प्यार का किया लहज़ा क़बूल है

 

इंकार करना आता है  उसे रिश्ता

उसके लबों पे कब रहता क़बूल है

 

 वो मारने नफ़रत के पत्थर  जानता

कब फूल प्यार का मेरा क़बूल है

 

तन्हा नहीं रहता वरना आज़म कभी

वो ही अगर  रिश्ता करता  क़बूल है

 

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शायर: आज़म नैय्यर

(सहारनपुर )

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