Uthti hai Mere Chehre par
Uthti hai Mere Chehre par

उठती है मेरे चेहरे पर

( Uthti hai mere chehre par )

 

उठती है मेरे चेहरे पर उसकी नजर नहीं
लेकिन वह मेरे हाल से भी बेखबर नहीं।

रोके ना रुक सकेगा हमारा वह प्यार है
पाबंदियां जहान की भी पुरअसर नहीं।

चाहत है आसमान में परिंदों सा उड़ चले
पर घोंसलों के बिन भी जहां में बसर नहीं।

गहरा जमा हुआ है मुहब्बत का यह दरख़्त
आंधी गिरा के तोड़ दे ऐसा शजर नहीं।

जन्नत मेरी उजाड़ के रख दी रकीब ने
बरबादियों में छोड़ी कहीं कुछ कसर नहीं

 

डॉ शालिनी शर्मा ‘मुक्ता’
( बरेली )
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