वर्षा ऋतु आई | Varsha ritu aayi | Chaupai
वर्षा ऋतु आई
( Varsha ritu aayi )
घेरे घटा सघन नभ घोरा ।
चमके चपला करहि अजोरा ।।१
सन सन बहे तेज पुरवाई ।
लागत हौ बरखा ऋतु आई ।।२
आगम जानिके खग मृग बोले ।
अति आनंद ह्रदय में घोले।।३
प्रेम मगन वन नाचे मोरा ।
पपिहा करे पिउ पिउ चहु ओरा।।४
हर्षित जीव जगत अब सांचे।
उछरि उछरि मृग भरहि कुलाचे।।५
भई प्रफुल्लित बिरहिन नारी ।
अब प्रिय आवन की हौ बारी।।६
एक पल धैर्य नही दिन राती ।
धड़कहि जोर जोर से छाती।।७
छन छन अंदर बाहर जाए ।
दरस चरण की कब प्रिय पाए।।८
पुलकित भई देखि प्रिय आगे।
भाग्य हमार आजु पुनि जागे।।९
बार-बार देखहि प्रिय ओरा।
जैसे चंद्र को निरखि चकोरा।।१०
दोहा
हर्षित भई प्रिय पाइके , नैन बहे जल धार।
“रूप” खिले तब प्रेम से , छलके नेह अपार।।