वसंत आगमन | Vasant Aagman par Kavita
वसंत आगमन
( Vasant aagman )
कानन कुंडल घूँघर बाल
ताम्ब कपोल मदनी चाल
मन बसंत तन ज्वाला
नज़र डगर डोरे लाल।
पनघट पथ ठाढ़े पिया
अरण्य नाद धड़के जिया
तन तृण तरंगित हुआ
करतल मुख ओढ़ लिया।
आनन सुर्ख मन हरा
उर में आनंद भरा
पलकों के पग कांपे
घूंघट पट रजत झरा।
चितवन ने चोरी करी
चक्षु ने चुगली करी
पग अंगूठा मोड़ लिया
अधरों पर उंगली धरी।
कंत कांता चिबुक छुई
पूछी जो बात नई
जिह्वा तो मूक भई
देह न्यौता बोल गई।
अभिलाषा मिश्रा
यह भी पढ़ें :-