विदा | Kavita
विदा
( Vida )
तुम कह देना
उन सब लोगों से,
जिन्हें लगता है हम एक दुजे के लिए नहीं.
जो देखते है सिर्फ़ रंग, रूप और रुतबा
जिन्होंने नहीं देखा मेरे प्रेम की लाली को
तुम्हारे गलो को भिगोते हुए.
जो नहीं सुन पाए
वो गीत जो मैंने कभी लफ़्ज़ों में पिरोए ही नहीं.
जो नहीं देख पाए
वो चुम्बन मेरे जिसने तुम्हारे होंठ भिगोए ही नहीं.
जिन्हें नहीं पता
के हृदय से हृदय का स्पर्श क्या होता है.
वो जो अपनी मानसिकता के चलते प्रेम को बदनाम करते
नहीं जान सकते मेरी नज़रों ने तुम्हें कितना चाहा है
तुम कह देना
के हमारे बीच कुछ ना था
अब नहीं होगा कभी तुम्हारे मेरे बीच कोई सम्बंध
ना रूहानी ना जिस्मानी
क्यूँकि वो देख नहीं सकते प्रेम लता के प्रसून
ना उन्हें सुगंध पसंद है, मेरे इत्र की जो तुम्हारी तरह महकता है
ना वो सुन सकते है
वो विलाप मेरे मन का जो सिसकियों में डूब गया
अश्रु, जो आँखो में ही सूख गए
प्रेम, जो हृदय में ही रह गया ।
मैं जा रहा हू,
अपने स्नेह को पीछे छोड़
तुम्हें छोड़, तुम्हारा हाथ छोड़
तुम चाहो तो मुझे कोसना, अपशब्द कह लेना
और कहने देना उन्हें भी जिन्हें हमारा प्रेम खटकता था
बस याद रखना वो स्पर्श
मेरे हाथों का तेरे हाथों से
तुम्हारी काया पर मेरी नज़रों का
क्यूँकि अब शायद तुम्हारी यादें ही है
जहां मैं जीवित रहूँगा
?
कवि : समीर डोंगरे
जिला रायपुर
( छत्तीसगढ़ )
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