विश्व बंधुत्व | Vishwa Bandhutva
विश्व बंधुत्व
( Vishwa Bandhutva )
चले हाथों में हाथ , लेके बताने
बंधुत्व भावना को , सबमें जगाने
बांटते हो क्यों आपसी, प्यार को
चाहते हो क्यों छुपाना , हार को
सत्य के पथ पर चलें हम,एक हो
बंधु सम रिस्तें सभी के , नेक हो,
कामना बंधुत्व का, मन में सजाने
बंधुत्व भावना को , सबमें जगाने।
सारी सृष्टि ही बनी जब, एक है
फिर क्यों, हिन्दू कोई क्यों, शेख है
है अलग गर धर्म भी तो ,क्या हुआ
मानव से और बड़ा भी , क्या हुआ
जाति धर्म रंग भेद, आओ मिटाने,
बंधुत्व भावना को , सबमें जगाने।
सबको अपना कह, धरती, पुकारे
फिर हम, क्यों न समझते हैं ,इशारे
एक ही पानी , हवा भी , है यहां
है तनिक ना भेद आपस, में जहां
लोक मंगल कामना, मिलकर मनाने
बंधुत्व भावना को , सबमें जगाने।
गैरों का गर हित , सोंचे, यहां पर
प्रेम को प्रीति से , सींचें, यहां पर
विश्व कुटुम्ब है हमारा , आज भी
हम रहें मिलकर हमें हो ,नाज भी
गुनगुनाएं प्यार से, मिलकर तराने
बंधुत्व भावना को , सबमें जगाने।
रचनाकार –रामबृक्ष बहादुरपुरी