वक्त के साथ | Waqt ke Sath
वक्त के साथ
( Waqt ke sath )
अजीब सा चला है दौर आज का
लोग तो पहले गम भी बांट लेते थे
अब तो खुशियों मे भी
शरीक होने का वक्त रहा नहीं
बदल गया आशीष भी शुभ कामना का
बदल गया सुबह शाम का सम्मान भी
आया दौर गुड मॉर्निंग, गुड नाईट का
मिट रही संस्कृत्ति, मरा भाव स्वाभिमान का
औपचारिकताओं का ही भाव रहा मन में
शब्दों के मिठास की हवा बह रही
दिखावे के अपनेपन में जी रहे हैं लोग
जबकि लगाव के वक्त मे कमी है हि नहीं
न अभाव तन का, न अभाव धन का
समय निकल हि जाता है व्यक्तिगत के लिए जब
तब प्रश्न के घेरे मे खड़ा हो हि जाता है
संबंध अपने पन का
आज को तो बदल हि जाना है कल में
रुकता है न कभी, न रुकेगा काम कोई
रह जाती हैं यादें कायम वक्त के साथ
रह जाती हैं बातें भि कहनी वक्त के साथ
( मुंबई )