वो आंखें जो आज़म इधर होती!

 

 

वो आंखें जो आज़म इधर होती!

प्यार की फ़िर उससे नज़र होती

 

दिल को मेरे क़रार आ जाता

हाँ अगर जो उसकी ख़बर होती

 

अंजुमन से चला गया उठकर

 प्यार की कुछ  बातें मगर होती

 

यूं न होते अंधेरे ग़म के फ़िर

जीस्त में खुशियों की सहर होती

 

वो न करती दग़ा मुहब्बत में

आहें दिल में न उम्रभर होती

 

जीवन में भेज दे हंसी कोई

रब अकेले न रह गुज़र  होती

 

आती है बस नजर तन्हाई ही

मेरी आंखें आज़म  जिधर होती

 

 

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शायर: आज़म नैय्यर

(सहारनपुर )

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