Ghazal | वो तो उड़ा हंसी चेहरे से हिजाब शायद
वो तो उड़ा हंसी चेहरे से हिजाब शायद
( Wo to uda hansi chehre se hijab shayad )
वो तो उड़ा हंसी चेहरे से हिजाब शायद
ऐसा लगा जैसे निकला आफ़ताब शायद
मैं समझा खिल गये है वो फ़ूलों की बहारे
महका था उस हंसी का ही वो शबाब शायद
वो फ़ोन आजकल करता अब नहीं जाने क्यों
रूठा है वो बड़ा ही मुझसे ज़नाब शायद
आया था इक हंसी मुखड़ा कल घर मेरे ही
वो लें गया चुराकर दिल की क़िताब शायद
की आज मैं नहीं रहता गांव में फ़िर तन्हा
देता अगर मुहब्बत का वो गुलाब शायद
ए यारों वो हक़ीक़त में आया घर मिलनें को
मैं नीद में था मैं समझा ये तो ख़्वाब शायद