यूं ना मुस्कुराया करो | Yun na Muskuraya Karo
यूं ना मुस्कुराया करो
( Yun na muskuraya karo )
हमसे मिलकर तुम यूं ना मुस्कुराया करो।
मुस्कानों के मोती यूं हम पर लुटाया करो।
हंसता हुआ चेहरा मन को मोहित कर जाता।
हंसी की फुलझड़ियां सबको दिखाया करो।
लबों की ये मुस्कान क्या गजब ढहाती है।
दिल तक दस्तक देती झंकार सुनाया करो।
वाह क्या अंदाज है तुम्हारी मुस्कुराहट में।
दुनिया जल उठती यूं ना मुस्कुराया करो।
चांद भी फीका पड़ जाए चांद सा वो चेहरा।
पास आकर हमारे ना हमसे दूर जाया करो।
सावन की बूंदों सी अधरों से झरती जो हंसी।
मुस्कानों की बारिश में हमको भिगाया करो।
खुशनुमा सा माहौल महफिल महकती जाती।
मुस्कुरा उठे समां सारा वो गीत सुनाया करो।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )