Zaidi

“जैदि” की ग़ज़ले | Zaidi ki Ghazlein

तन्हा जिंदगी अब जीया न जाती है

जी भर कर मुझ को अब सोने दो,

बांहों में तेरी मुझको अब खोने दो।

=====================

कब से बेकरार हूँ तुमसे मिलने को ,

दो जिस्म एक जाँ मुझको होने दो।

=====================

है जो नफरत दिल में तेरे छोड़ो भी,

इस दिल में बीज प्यार का बोने दो।

=====================

तन्हा जिंदगी अब जीया न जाती है,

अब कंधो को बोझ तुम्हारा ढ़ोने दो।

======================

रुठ कर मिले हमें जो जख़्म तुम से

धोती हूँ उन जख़्मों को तो धोने दो।

======================

इल्तिजा है शायर “जैदि” इक तुमसे,

मुझ को फ़कत अब तुम्हारी होने दो।

पता नही चलता

कब गिर जाऐ आदमी ज़मीर से, पता नही चलता,

मौत कब कैसे आ जाऐ समीर से पता नही चलता।

===========================

दुनिया जालिम है कब मदद का मेहनताना मांग ले,

क़त्ल किस का होगा, शमशीर से पता नही चलता।

===========================

हार होगी या जीत ये सब रणभूमि ही बताऐगी हमें,

राजन बेताज कब होगा वज़ीर से पता नही चलता।

===========================

पूछ के देखो बताऐगा ग़रीब,कहाँ महल अमीर का,

है घर किधर ग़रीब का ये अमीर से पता नही चलता

============================

हैसियत कपड़ो से देखना, ये गलतफ़हमी है हमारी,

कितनी है दौलत पास, फ़कीर से पता नही चलता।

============================

कै़द है “जैदि” क़फ़स में कब तलक रहेगा पता नही,

हौसलों में कितनी जान जंजीर से पता नही चलता।

===========================

मायनें:-

समीर: -हवा

शमशीर: -तलवार

कफ़स: -पिजंरा

मुझको इतना भी न सता ऐ जिंदगी

मुझ को इतना भी न सता ऐ जिंदगी,

क्या ख़ता है मेरी मुझे बता ऐ जिंदगी।

====================

क्या बिगाड़ा हम ने तेरा, बता दे ज़रा,

तलब है मिलने की दे पता ऐ जिंदगी।

====================

गुज़र रहे शबो रोज़,दौर ए मुसीबत में,

दी है खुशियाँ गर तो जता ऐ जिंदगी।

=======================

ग़म ए अश्क तुमने पीए है कभी बता,

हुई तो तुझ से भी है ख़ता ऐ जिंदगी।

 ===================

रुला के हंसाती कभी हंसा के रुलाती,

ज़रा बता तेरा है क्या मता ऐ जिंदगी।

===================

ठहर के पूछ “जैदि” से तुझसे कितना,

है परेशाँ, हर ज़ईफ़ो-फ़ता ऐ जिंदगी।

===================

मायने:-

सता:-कष्ट

शबो-रोज़:-दिन और रात

ग़म ए अश्क:-ग़म के आंसू

ख़ता:-भूल

मता :-विचार

ज़ईफ़ो-फ़ता:-बूढा और जवान आदमी

तुझ को न पाया होता

( Tujhko na paya hota )

बेकार थी हयात हमारी तुझ को न पाया होता,

गर तुम न मिलती मुझको तो वक्त जाया होता।

==========================

बेख़बर सा था अनजान सी गलियों से तुम्हारी,

फंसता जाल में न तुम्हारे, गर न सताया होता।

==========================

पगली रातों को तुमने,खुद को यूँ क्यों जगाया,

मुहब्बत थी अगर मुझसे तो जरा बताया होता।

==========================

ख़्यालों में सताना तेरा मुझ को अच्छा न लगा,

दर्द ए दिल गर था अपना समझ सुनाया होता।

==========================

इक पल मुस्कुरा के मुझको देखा होता जानम,

पल पल साथ तुम्हारे मेरी रुंह का साया होता।

=========================

उल्फ़त का ये सफ़र मुश्किल से “जैदि”कटा है,

आसान सफ़र कटता, अगर दिल लगाया होता।

=========================

हो जाता हूँ

आजकल मैं, बिन तुम्हारे अख़बार हो जाता हूँ,

पूछता है कोई बारे में तेरे ख़बरदार हो जाता हूँ।

========================

रुसवा जब भी करे हम को महफिल से अपनी,

सिर झुका कर शर्मशार सा हरबार हो जाता हूँ।

=========================

लाख वो हम को धिक्कारे है जिंदगी में अपनी,

बेखुदी है कि मेरी मैं फिर मददगार हो जाता हूँ।

=========================

बदलते है लिबास मगर मन की न बदबू जाती,

देखता हूँ ऐसे लोगों को मैं खूंखार हो जाता हूँ।

=========================

है ख़बर गुलशन में गुल तो है मगर महक नही,

गुजरता जानिब से, जब मैं बेज़ार हो जाता हूँ।

==========================

हसरते बहुत है दिल में थोड़ी सी गुप्तगू कर ले,

ये जुबां तल्ख है “जैदि” जरा बेदार हो जाता हूँ।

=========================

कबीर

========

कबीरा तेरी लेखनी,चले ऐसे जैसे तलवार,
पाखंडी भी कहता मेरे पाखंड को भी मार।
==========================

जाके हिय सदियों बसे नफरत भरे विकार,
चतुर,चलाक, अभिमानी माने कभी न हार।
==========================

जात पात के जाल में, डाले संग-ओ-ख़ार,
धर्म कर्म की डाल बेड़ियाँ, करे हरदम वार।
==========================

कबीरा तेरी ऐसी जननी खूब लुटायो प्यार,
जो तुझको जाने तुझे वही बनाऐ हथियार।
==========================

अजीब निराली रीत पुरानी है देखी बारंबार,
कोई न माने वाणी तेरी वे फेरे माला हजार।
==========================

क्या कहूँ कबीरा, है तेरी महीमा अपरम्पार,
इक बार फिर धरा पे आ “जैदि” करे पुकार।
===========================

याद कैसे करे

========

हादसे,चेहरे के मिटा निशान देते है
याद कैसे करे मिटा पहचान देते है।
==================

अजनबी लोग आते है, हाल पूछने,
वो नही आते जो कहते जान देते है।
==================

मौत पर मेरी शोर मचाने आऐगें वो,
ज़िस्त में जो खड़ा कर तुफान देते है।
==================

अब भरोसा ये किस पे करे बताओ,
लोग कैसे, अपना डुबो इमान देते है।
===================

पास में तुम रखा करो पता, अपना,
खोज लेगें जरुर हमे जो ध्यान देते है।
==================

“जैदि” देखो जरा यहाँ है कौन कैसे,
लोग जाते है बदल,जो जुबान देते है।
===================

दुःशासन

========

लो लुटने लगी है आबरू,
नये धृतराष्ट्र के शासन में।
==============

लगी है आग चारो ओर,
प्रजा त्रस्त है कुशासन में।
===============

नारी निर्वस्त्र किऐ जा रही है,
हाकिम बैठा, मौन मुद्रासन में।
================

बदल गयी है देखो राजसभा,
बदले सब किरदार प्रशासन में।
===============

जालिम जिस्म नौच रहे है देखो,
कोई ख़ौफ नही है दुःशासन में।
================

तुम कहाँ हो कृष्ण,आ कर देखो?,
लज्जित नारी बैठी मरणासन्न में।
================

आज नही तो कल

===========

झूठे और मक्कारों को तो बेनकाब होना था,
आज नही तो कल उदय आफ़ताब होना था।
======================

अंधेरा कब तलक सच दबा के रखता दोस्त,
बर्फ कब तक जमीं रहे, उसे तो आब होना था
=======================

सच परेशाँ हो सकता है मगर, मर नही सकता
रक़ीब के हर सवाल का, उसे जवाब होना था
=======================

दुश्मन की चालो का अंदाज़ नही था उस को,
मगर हाँ, सच का समय थोड़ा खराब होना था
======================

घेर लिया था चारों ओर बच कर कहीं न जाऐ,
आखिर सच की झोली में ये ख़िताब होना था
=======================

कोई न काबिल था इस जंग-ए-मैदां में “जैदि”,
कैसे हार जाता वो, उसे तो लाजवाब होना था

हम हमारा क्या

============

मर्जी से अपनी हम कहाँ सफर करते है,
रखते तो है पाँव जमीं पर, मगर डरते है।
===================

रहमोकरम पर चलते है हम हमारा क्या,
रख दे हाथ सिर पर कोई तब निखरते है।
====================

हताश हमारी हयात, किस पर जोर चले,
अछूत हो जाती चीज, जहाँ हाथ धरते है।
====================

उठा कर सिर चल पड़े तो शामत हमारी,
न जाने क्या दोष क्यूँ नज़र में अखरते है।
====================

अमानुष बना के छोड़ा जमाने ने हम को,
कि शब-ओ-रोज घुट-घुट के हम मरते है।
=====================

सिसकती है जिंदगी, इतना जुल्म न करो,
मज़लूम “जैदि” देख तुमको आहें भरते है।
=====================

मायने:-
हताश:-निराश
हयात:-जिंदगी
शामत:-विपत्ति
शबे-रोज:-रात और दिन
मज़लूम:-अत्याचार से पीड़ित

हताश हमारी हयात

=================

मर्जी से अपनी हम कहाँ सफर करते है,
रखते तो है पाँव जमीं पर, मगर डरते है।
===================

रहमोकरम पर चलते है हम हमारा क्या,
रख दे हाथ सिर पर कोई तब निखरते है।
====================

हताश हमारी हयात, किस पर जोर चले,
अछूत हो जाती चीज, जहाँ हाथ धरते है।
====================

उठा कर सिर चल पड़े तो शामत हमारी,
न जाने क्या दोष क्यूँ नज़र में अखरते है।
====================

अमानुष बना के छोड़ा जमाने ने हम को,
कि शब-ओ-रोज घुट-घुट के हम मरते है।
====================

सिसकती है जिंदगी, इतना जुल्म न करो,
मज़लूम “जैदि” देख तुमको आहें भरते है।
====================

मायने:-
हताश:-निराश
हयात:-जिंदगी
शामत:-विपत्ति
शबे-रोज:-रात और दिन
मज़लूम:-अत्याचार से पीड़ित

राजन

====

इतना भी किस लिऐ तुम्हारा ये ग़रुर राजन,
तख़्त-ओ-ताज से गिराऐगा ये ज़रुर राजन।
=====================

मज़लूमो को अब ओर न सता बस भी कर,
दिल की बस्तियों से इतना न जा दूर राजन।
======================

लहूलुहान है सड़कें देख गरीब के छालो से,
क्या लाशे कुचलना ही है, तेरा सरुर राजन।
=====================

चमक चेहरे की चीख-चीख के कहे तुम्हारी,
मुफ़लिसी को रोंद के पाया है ये नूर राजन।
=====================

तेरी चौखट पर सिर सब का,बस झुका रहे,
ये मशां जो फ़कत तुम्हारी है मग़रूर राजन।
======================

सुन इतना भी जुल्म न कर तूं “जैदि” पे कि,
ख़त्म हो जाऐ ये तुम्हारी छवि पुरनूर राजन।
======================

Dr.L.C. Zaidi

शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
बीकानेर।

मायने:-

इता: इतना
सरुर: नशां
मुफ़लिसी : गरीबी
मग़रूर: अभिमानी
पुरनूर: चमकदार

यह भी पढ़ें:-

इस जमाने में | Ghazal Is Zamane Mein

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *