जख्म | Zakhm par Kavita

जख्म

( Zakhm )

 

 

दुखती रग पे हाथ रखा घाव हरे हो गये

कल तक जो अपने थे बैरी हमारे हो गए

 

घाव भरते नहीं कभी जो मिले कड़वे बोल से

नासूर भांति दुख देते रह रहकर मखोल से

 

जख्म वो भर जाएंगे वक्त की मरहम पाकर

आह मत लेना कभी किसी दुर्बल को सताकर

 

जख्म छिपाकर ही रखो मतलबी संसार से

नमक लिए घूमते लोग छिड़कते बड़े प्यार से

 

समय सबकुछ बदल देता घाव भी भर जाएंगे

कुछ जख्म ऐसे ही होते हर घड़ी याद आएंगे

 

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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