नई शुरुआत
नई शुरुआत

नई शुरुआत

( Nayi Shuruaat )

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सदैव कठिनाइयों से भरी होती है,
शनै: शनै: सहज होती जाती है।
फिर एक दिन-
कली, फूल बन खिल जाती है,
बाग बगिया को महकाती है;
सुरभि फिजाओं में दूर तक बिखर जाती है।
आकर्षित हो लोग खिंचे चले आते हैं,
सौंदर्य/सफलता देख मंत्र मुग्ध हो जाते हैं।
चर्चा होने लगती सुबहो शाम,
सिर्फ सफलताओं का ही होता गुणगान।
आंतरिक संरचना, आरंभिक कठिनाइयों-
संघर्षों, विफलताओं की चर्चा नहीं होती?
मिली है जीत तो सोचो मेहनत कितनी की होगी?
पर इसका जिक्र नहीं करते,
वाह्य आवरण पर ही अभिभूत हैं होते!
कुछ सफलता देख हैं जलते,
मन में ईर्ष्या का भाव लिए रहते।
स्वयं खिलने का प्रयास नहीं करते,
हरकतें अजीब करने हैं लगते;
मनोदशा उनकी प्रकट सबकुछ हैं करते!
देख जिन्हें मन द्रवित हो होगा?
उस पल विवेक ही आपके काम आएगा।
प्रयास सांत्वना देने का करें,
एकाएक कुछ कहने से बचें।
धीरे धीरे सामान्य हो जाए शायद?
संवाद की जारी रखें कवायद।
कभी लगेगा कि प्रयास बेकार है-
लेकिन प्रयास बेकार कभी नहीं होता?
रिजल्ट कुछ न कुछ जरूर होगा।
सफलता असफलता से न डरें,
निरंतर प्रयास जारी रखें;
विफल होने पर-
दुगने उत्साह से पुनः प्रयास करें।
दिल उनका भी एक दिन जीत ही लेंगे?
तब तक चैन की न सांस लें!
बात ‘नवाब मंजूर’ की मान लें।

 

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नवाब मंजूर

लेखक-मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर

सलेमपुर, छपरा, बिहार ।

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