एक ऐसी मोहब्बत | Ek aisi mohabbat | Poem in Hindi
एक ऐसी मोहब्बत
( Ek aisi mohabbat )
एक ऐसी मोहब्बत किये जा रहे है,
अकेले ही हर ग़म सहे जा रहे है।
नही कोई शिकवा नही है शिकायत,
हम अपने दरद को सहे जा रहे है।
नही कुछ कहेगे तेरा नाम लेकर,
वफा या ज़फा ये हमारा करम है।
मेरे दिल के जख्मों ने इल्जाम दी है,
उसी से क्यो सब कुछ कहे जा रहे है।
ना रस्ता हमारा ना मंजिल तुम्हारा,
नदी के किनारो से दोनो रहेगे।
हमें देख कर तुम तो मुस्का भी लेगे,
तुम्हे देख कर हम तो रोते रहेगे।
ना ही बाजु मिला ना ही कांधा तुम्हारा,
नसीबा का जोजख कहे जा रहे है।
लिखा दर्द जब भी पढ़ा है सभी ने,
किसी ने कहाँ वाह क्या लिख दिया।
मेरे हूंक पे लिख दिया है किसी ने,
ये हुंकार क्या कुछ सहे जा रहे है।
एक ऐसी मोहब्बत किए जा रहे है,
खुद अपने जख्म को सिये जा रहे है।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )